हिन्दू धर्म में भगवान् सूर्य केवल एक ग्रह ही नहीं बल्कि एक देवता के रूप में भी पूज्यनीय हैं और कलयुग में भगवान् सूर्य ही एकमात्र ऐसे देवता है, जिनकी पूजा उनके प्रत्यक्ष रूप में की जाती है, भगवान सूर्य के अनेकों मंदिर भारत देश के बहुत से स्थानों पर स्थित है, पर इन सब में सबसे विख्यात तेरहवीं शदी में निर्मित ओड़िशा का कोणार्क मंदिर है, यह मंदिर यहाँ के स्थानीय लोगों में "विरंचि नारायण" के नाम से भी प्रसिद्ध है। सूर्य देव को समर्पित यह मंदिर अपनी पौराणिकता व आस्था के लिए पुरे विश्व में विख्यात है, और इसमें निहित इसकी कई विशेषताएं भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनियां का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। तो आईये इस ब्लॉग के माध्यम से इस मंदिर के इतिहास और विशेषताओं को विस्तृत रूप से जानने की कोशिश करते हैं।
कोणार्क मंदिर की भौगोलिक स्थिति
यह मंदिर भारत देश के ओड़िशा राज्य में जगन्नाथ पूरी से 35 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित कोणार्क शहर में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है।
कोणार्क मंदिर का इतिहास और इसकी रचना
कोणार्क शब्द "कोण" एवं "अर्क" की संधि है - जिसमे "कोण" का अर्थ किनारे या कोने से है वहीँ "अर्क" भगवान् सूर्य का दूसरा नाम है। कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के महान राजा नरसिंहदेव प्रथम ने सन 1250 ईस्वी में करवाया था। इस मंदिर के निर्माण में लाल रंग के बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, और इस मंदिर के निर्माण में उपयोग में लायी गयी शैली का नाम "कलिंग शैली" है। कलिंग शैली प्राचीन ओड़िशा, पूर्वी बंगाल, और उत्तरी आंध्र प्रदेश में विकसित हुई एक वास्तुशैली है। भारत के उत्कृष्ट स्मारक स्थलों में से एक इस भव्य मंदिर की आकृति भगवान् सूर्य के विशाल रथ के समान है, और इस रथ की खींचते हुए सात घोड़े इस मंदिर को और भी आकर्षित बनातें है।
दोस्तों, भगवान् सूर्य का यह मंदिर अद्भुत शिल्प कृतियों से परिपूर्ण है। इस मंदिर के निर्माण की शुरुआत सन 1238 में गंग वंश के शासक एवं महान सूर्य भक्त राजा नरसिंहदेव प्रथम के द्वारा 12 एकड़ भूमि पर 1200 मजदूरों की सहायता से की गयी थी, और इसका निर्माण कार्य 12 वर्षों में पूरा कर लिया गया। इस मनमोहक मंदिर के इंच-इंच में अद्भुत कारीगरी देखने को मिलती है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित होने पर मजबूर कर देती है। इस मंदिर में भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाएं स्थापित की गयी है:
- बाल्यावस्था - उदित सूर्य (ऊंचाई 8 फ़ीट)
- युवावस्था - मध्यान सूर्य (ऊंचाई 9.5 फ़ीट)
- प्रौढ़वस्था - अपराह्न सूर्य (ऊंचाई 3.5 फ़ीट)
दोस्तों इस रथ रुपी मंदिर में लगे 12 जोड़े पहिये साल के 12 महीने, इस पहिये में बनायीं गयी 8 अर की आकृति दिन के आठ पहर, और रथ को खींचते 7 घोड़े सप्ताह के सात दिनों को दर्शाते हैं। दोस्तों इस मंदिर को ऐसी सुंदरता प्रदान की गयी है जो दुनिया में शायद ही कहीं और आपको देखने को मिले। इस मंदिर के निर्माण में बहुमूल्य धातुओं का भी इस्तेमाल किया गया है। इसमें की गयी नक्काशियां किसी भी व्यक्ति को आश्चर्यचकित कर सकती है। इस मंदिर के आस पास की प्राकृतिक सुंदरता भी इस मंदिर की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं। यहाँ पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा एक उद्यान का भी निर्माण करवाया गया है।
कोणार्क मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
दोस्तों इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बहुत ही रोचक है, पुराणों में लिखी कथा के अनुसार द्वापरयुग में भगवान कृष्ण की आठ पत्नियों - रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा, और लक्ष्मणा - में जाम्बवन्ती के पुत्र साम्ब भी भगवान की ही तरह परम रूपवान तथा आकर्षक थे, जिसे देखकर भगवान् कृष्ण की अन्य पत्नियां अधीर हो जाया करती थी। एक बार नारद मुनि भगवान् के यहाँ द्वारका पधारे और एकांत में भगवान् को इस बात की जानकारी दी की आपके पुत्र साम्ब को देखकर आपकी अन्य पत्नियां उत्सुक हो जाती है, भगवान् आप इस बात की परीक्षा अपने सामने लीजिये, जिसपर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नियों और साम्ब को अपने सामने बुलाया। भगवान के बुलाने पर वे सभी भगवान के सामने एक जगह एकत्रित हुए, और वहां पर भी भगवान कृष्ण के सामने ही उनकी पत्नियों का मन साम्ब को देखकर अधीर हो उठा, उसके बाद भगवान ने अपनी पत्नियों को अपने अपने स्थान पर भेज दिया और साम्ब का परित्याग करना ही उचित समझा और उन्होंने साम्ब को रूपहीन होने का श्राप दे दिया, जिसके कारण साम्ब के शरीर में कुष्ठ रोग हो गया।
साम्ब को कुष्ठ हो जाने के बाद नारद मुनि ने ही उन्हें इस रोग से मुक्ति पाने के लिए भगवान् सूर्य की आराधना करने का उपदेश दिया, जिसके उपरांत साम्ब ने वेद और उपनिषदों में लिखे गए मन्त्रों के द्वारा प्रातः, मध्यान, और सांयकाल में कोणार्क में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर 12 वर्षों तक भगवान सूर्य की विधिवत आराधना की, 12 वर्षों की तपस्या के बाद भगवान सूर्य ने साम्ब पर खुश होकर उसके सारे रोग हर लिए और उसका कल्याण किया। अपने रोगों से मुक्ति पाने के बाद साम्ब ने चंद्रभागा नदी के तट पर देवताओं के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा के द्वारा भगवान् सूर्य के अंश से बनायी गयी मूर्ति को एक मंदिर बनवाकर उसमे स्थापित किया, जिसमे भगवान सूर्य अपने 12 रूपों में से एक मित्र रूप में वहां निवास करते हैं। दोस्तों कहा जाता है की इस नगर को स्वयं साम्ब ने ही बसाया था, जिसका नाम उन्होंने साम्बपुर रखा था।
भगवान् कृष्ण के पुत्र साम्ब ने इसके अलावा पाकिस्तान के मुल्तान (द्वापरयुग में मूलस्थान/कश्यपपुरा के नाम से प्रसिद्ध) में भगवान सूर्य के प्रातःकालीन प्रतिमा, जो "कालप्रिय" के नाम से प्रसिद्ध है, की भी स्थापना की थी।
कोणार्क सूर्य मंदिर की विशेषताएं
दोस्तों इस मंदिर में कई ऐसी विशेषताएं हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, उन्ही में से कुछ निम्लिखित हैं:
- इस मंदिर की सबसे प्रमुख विशेषता यह है की प्रातः काल सूर्य देव की पहली किरण इस मंदिर के गर्भ गृह में स्थित सूर्य देव की मूर्ति पर पड़ती है।
- इस मंदिर में बने 24 रथ के पहिये (जिनका व्यास 10 फ़ीट है) भी इस मंदिर के आकर्षण का मुख्य केंद्र है, ये कोई साधारण पहिये नहीं हैं, इन पहियों के द्वारा दिन के समय का सही पता चलता है, कोई भी व्यक्ति इन पहियों की परछाई की मदद से सही समय का पता कर सकता है, इसलिए इन पहियों को सूर्य घड़ी भी कहा जाता है।
- इस मंदिर के द्वार पर दो सिंह हांथी का संहार करते हुए नजर आते हैं, इसके पीछे की मान्यता यह है की शेर गर्व का और हांथी पैसों का प्रतिनिधितव कर रहे हैं।
- सूर्य मंदिर के शिखर पर 52 टन का चुम्बक लगा हुआ है, जो समुद्र से उत्पन्न हुई प्राकृतिक कठनाइयों को कम करता है। कहा जाता है की इस चुम्बक के साथ-साथ मंदिर में अन्य चुम्बक कुछ इस प्रकार लगाए गए थे की मंदिर के अंदर की मूर्ति हवा में तैरती हुई दिखाई देती थी। परन्तु इस मंदिर में लगे चुम्बकों की ताकत इतनी ज्यादा थी की इसके पास से गुजरने वाले पानी के जहाज़ इसकी ओर खींचे चले आते थे, जिस वजह से अंग्रेजों ने इस मंदिर में लगे चुम्बकों को निकलवा दिया, जिस कारण मंदिर का संतुलन बिगड़ गया और इसके कुछ दिवार और इसमें लगे पत्थर गिरने लगे।
- यह मंदिर भारत के सात आश्चर्यों में से एक है, यह UNESCO World Heritage में शामिल ओड़िशा का एकलौता मंदिर है।
- समुद्र के किनारे पर स्थित होने से इसकी प्राकृतिक सुंदरता अवर्णनीय है।
नहीं होती है इस मंदिर में पूजा
दोस्तों इस मंदिर में क्यों नहीं होती भगवान् सूर्य की पूजा, इस सवाल को लेकर अनेकों मत हैं, उन्हीं में से एक मत यह भी है की सोलहवीं शताब्दी में जब मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा मंदिरों को तोड़ने का शिलशिला जारी था, इस भय से उस वक़्त इस मंदिर के पंडितों ने भगवान सूर्य की मुख्य मूर्ति को यहाँ से हटाकर कही और छुपा दिया था जो बाद में पूरी भेज दिया गया, कहा जाता है की इसी के बाद से इस मंदिर में भगवान् सूर्य की पूजा अर्चना बंद हो गयी।
Author: Written by Anjali Jha
6 Comments
Bahut sundar likhe ho Sourabh
ReplyDelete👍👍
ReplyDelete👍
ReplyDeleteNicely described...
ReplyDeleteOutstanding 🔥
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर वाह क्या बात है
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