बिखर चुके थे पंख उसके...
पर वो जूनून दिल में जिन्दा था !
की अम्बर फतह करने को...
निकला वो परिंदा था !!
अविरत प्रयत्नशील था...
वो नील गगन में उड़ने को !
एक विजय पाने को...
या संघर्षशील मौत मरने को !!
अन्तर्मन की इक्षाशक्ति...
उस परिंदे की बेमिसाल थी !
उसकी नायाब कोशिशें...
इस जग के लिए मिसाल थी !!
की जानकर भी सत्य को...
थमे न उसके प्रयास थे !
पंख ही तो बिखरे थे उसके...
पर न मिटे उसके प्यास थे !!
मालूम था उसे, इस रण में...
वो विजय नहीं हो पाएगा !
पर एक ख़ुशी थी उसके सीने में...
की वो कभी कायर नहीं कहलायेगा !!
दे दी प्राणों की आहुति...
जो अब तक सांसों से जिन्दा था !
की अम्बर फतह करने को...
निकला वो परिंदा था !!
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1 Comments
Really awesome lines.👍
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